चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 58

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चार्ली चैप्लिन मेरी आत्मकथा अनुवाद सूरज प्रकाश 58 फिफ्थ एवेन्यू के आस पास चुस्त युवा नाज़ियों को महोगनी के छोटे-छोटे मंचों पर खड़े होकर जनता के छोटे-छोटे समूहों के सामने भाषण देते सुनना बहुत अजीब लगता। एक भाषण यूं चल रहा था: 'हिटलर का दर्शन गहन हैं और इस औद्योगिक युग, जिसमें बिचौलिये या यहूदी के लिए बिल्कुल भी जगह नहीं है, की समस्याओं का सुविचारित अध्ययन है।' एक महिला ने टोका,'ये किस किस्म की बात हो रही है?' वह हैरान हुई,'ये अमेरिका है। आप समझते क्या हैं कि आप कहां हैं?' वह चमचे सरीखा नौजवान, जो सुदर्शन था, बेशरमी