चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 56

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चार्ली चैप्लिन मेरी आत्मकथा अनुवाद सूरज प्रकाश 56 फिज़ां में एक बार फिर युद्ध के काले बादल मंडरा रहे थे। नाज़ी अपनी मुहिम पर निकल चुके थे। हम कितनी जल्दी पहले विश्व युद्ध की विभीषिका और चार वर्ष के मृत्यु के तांडव को भूल गये? कितनी जल्दी हम आदमियों के लाशों के ढेरों को, लाशों से भरी पेटियों को, हाथ कटे, पांव कटे, अंधे हो गये, टूटे जबड़ों वाले और अंग भंग हो गये विकृत लूले लंगड़े लोगों को भूल गये? और जो मारे नहीं गये थे या घायल नहीं हुए थे, वे भी कहां बच पाये थे? कितने ही