आजादी - 39

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दारोगा दयाल एक कुशल चालक भी था और इस समय वह अपनी पूरी कुशलता से जीप को उसकी क्षमता के अनुसार पूरी गति से भगाए जा रहा था । उसकी पैनी निगाहें गाड़ी से भी तेज दौड़ रही थीं । एक के बाद एक कई गाड़ियों को वह ओवरटेक कर चुका था फिर भी उसे वह सफ़ेद टेम्पो कहीं नजर नहीं आ रहा था । जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं । उसका अंदाजा था कुछ ही देर में कमाल पकड़ा जायेगा लेकिन अब दूर दूर तक उसका