महक

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मोबाईल की घंटी बजी तो हमेशा की तरह नंबर पर नजर गयी। कोई अनजाना सा नंबर था। चित्त सुबह से अनमना था। कोई काम तो क्या किसी से बात करने या किसी की बात सुनने की भी इच्छा नहीं हो रही थी। हर दिन की घिसी- पिटी दिनचर्या पहले बोरियत और फिर उदासियों में बदलने लगी थी। सुबह उठते ही किचन, अरविन्द के साथ चाय, अरविन्द की आफिस की तैयारी और उसके बीच - बीच में उनकी छेड़ - छाढ़, कभी - कभी गुस्सा भी, फिर नेहा का स्कूल, काम वाली बाई के साथ झिक- झिक, नेहा का होम वर्क,