तीन दोस्‍त (व्यंग्य)

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तीन दोस्‍त एक शहर में तीन दोस्‍त थे , तीनों बेरोजगार । उन्‍होने रोजगार पाने का बहुत प्रयास किया लेकिन हर ओर भ्रष्‍टाचार और भाई भतीजावाद के का बोल बाला था। उन्‍होंने जुगाड़ करने की कोशिश भी की । जब कोई जुगाड़ काम न आए तो उन्‍होंने सोचा कि अखिर वे परिवार और समाज के लिए नकारे है । उन्‍होंने फैसला किया कि समाज जब उनकी हालत पर तरस नहीं खाता तो ऐसे समाज की परवाह करना उचित नहीं है । उन्‍हें अपने - अपने भविष्‍य की चिन्‍ता थी और उन्‍हें अपना भविष्‍य इस शहर में सुरक्ष्‍िात नहीं लग