सर्प-पेटी जैसे ही दरवाजे की घण्टी बजी, मैं चौंककर जाग गई| “सुनिए,” मैंने पति को पुकारा, “मेरे गले में बहुत दर्द है, साँस एकदम घुटती-सी मालूम हो रही है.....|” मदन हिले नहीं| शायद उन्हें गहरी नींद आ रही थी| घण्टी और जोर से बजी तो मैंने जोर जोर से पुकारा, “सुनिए, उठिए तो-मेरा सिर चकरा रहा है-मेहरी लौट गई तो दिन-भर दुहरी परेशानी मुझी को उठानी पड़ेगी.....|” मदन फिर भी नहीं हिले| मुझे बहुत गुस्सा आया| रोना भी| पर उठे बिना कोई चारा भी तो नहीं बचा था| “ओह, आप!” दरवाजा खोला तो देखा उषा भाभी अपने बच्चों के साथ