बाऊजी और बंदर

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सूर्यबाला उन्‍हें फिर से बच्‍चों की बहुत याद आ रही है। सुनते ही मैंने सिर कूट लिया। सिर कूटने की बात ही थी। अभी साल भी तो पूरा नहीं हुआ, संदीले में आए ही थे। एक-दो नहीं, पूरे छह महीने रहकर गए। वह भी क्‍या कभी अपने से जाते भला! मैंने ही अक्‍ल और तिकड़म भिड़ाई कि गाँव जाकर अपनी जगह-जमीन देखिए, इस तरह ज्‍यादा दिन तक छोड़ देंगे तो काश्‍तकार बेदखल कर हड़प बैठेंगे - बैठे-बिठाए हजारों का नुकसान। सो बीच-बीच में निगरानी बनाए रखनी चाहिए। तब कहीं बात उनके दिमाग में बैठी। बोरिया-बिस्‍तर बँधा। तो भी जाते-जाते, जीप