न्याय अन्याय

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कहते है देश मे कानून सर्वोपरि है, हो सकता है ,ऐसा ही हो लेकिन लगता तो नहीं है । जनता भ्रमित है कि कानून किसके लिए है या किसको न्याय दिलाने के लिए है जनता को या अमीरों को। ऐसा भी नहीं कि हमारे कानून मे कोई कमी है बस अब हममे ही उसे लागू करने कि इच्छाशक्ति नही रही । कानून को बनाने वाले अब उसमे छेद करना भी सीख गए है । वे उसे अपने अनुरुप बदलने का प्रयास भी करने लगे है । न्यायलय उनके इस कार्य को केवल देख सकता