स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा

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तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा खोजता था मैं अभी तक आंधियों में शांति के क्षण, जिन्दगी से हार मांगे मौत से दो मधुर चुम्बन। अमा के तम में अमर आलोक की बस कल्पना ही, वह भ्रला आलोक क्याा जो मुस्कराये चार उडगण। तुम अगर आओ लगत को ज्योति का आधार दूंगा॥ तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा॥ बंधनों के स्वर्ग को जिसने नियति का भार जाना, मदिर उन्मादी दृगों को कैद कर समझे बहाना। वह गगन का मुक्त पंछी दूर से ही हंस रहा जो कौन सा विस्मय उसे यदि