रत्नावली 16

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रत्नावली रामगोपाल भावुक सोलह होली के पावन पर्व पर हम होली न खेलें। फिर भी उसके छींटे ऊपर पड़े बिना नहीं रह सकते। यह सोचते हुये हरको अपने पति की शिकायत करते हुये रत्नावली से बोली-‘देखो तो भौजी, आज वो होली में मेरा रास्ता रोककर खड़ा हो गया- बड़ी, छोटी से तो मेरा जी भर गया। ऐसा कर, छोटी को गुरुआन के यहॉं पहॅँचा दे और तू घर में आकर रहने लग। उसने मेरे कान भर-भर के तुझे घर से निकलवा दिया। अब हर घड़ी लड़ती रहती है।‘ भौजी मैंने तो उससे कह दिया-‘मैं अब