भावनाएं सब में होती हैं

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" तो क्या पेड़ - पौधे भी हमें सुन सकते हैं दादाजी!!?" सात साल के शुभ ने अपने दादाजी से पूँछा। " डॉ मनमोहन श्रीवास्तव" शुभ के दादाजी, एक सफल वनस्पति-वैज्ञानिक । वे दोनों ही अपने घर के एक छोटे से बगीचे में बैठे थे जहाँ शुभ ने अपने छोटे छोटे हांथों से पौधे लगाए थे। पेड़ पौधों के प्रति शुभ की रूचि देखते हुए आज दादाजी उसे वनस्पतियों से अवगत करा रहे थे। " हाँ बेटा! वे हमें सुन सकते हैं। हमारा स्पर्श, हमारा होना या न होना.. सब कुछ महसूस कर पाते हैं क्योंकि उनमें भी भावनाएं होती