एक किस्सा ऐसा भी

  • 6.1k
  • 2k

छींटदार नीले रंग का पर्दा अपनी जगह पर व्यवस्थित हो चुका था. भगतजी(देवधर ) अपनी खटिया पर लेट चुके थे। अपने बेटे की पदचाप उन्हें साफ सुनाई दे रही थी। बेटा बिल्कुल बरामदे तक आ चुका था। जाड़े का दिन था, इसलिए भगतजी ने कम्बल को अपने चेहरे तक खींच लिया। धीरे-धीरे उनके कराहने की आवाज कमरे से बाहर बरामदे तक आने यानी भगतजी का पाेता पिता के पैरों से लिपट गया। वह उनकी पैंट की जेब में हाथ डालकर पूछने लगाअभी वे जेब से कुछ निकाल ही रहे थे कि भगतजी के कराहने की आवाज उन तक पहुंच गई। अपने बाबूजी की आवाज सुनते ही