9 आधीरात में ज्योति को प्रसव पीड़ा शुरू हुयी। अविनाश तुरंत ऑटो लेने भागा। इधर रमा ने हाॅस्पीटल में उपयोगार्थ साथ में ले जाने वाली सभी आवश्यक वस्तुएँ रख ली। ज्योति की नज़र उतारकर रमा ने उसे ऑपरेशन थियेटर को विदा किया। रात के तीन बजे यह खब़र आई की ज्योति इस बार भी कुलदीपक जन न सकी। रमाबाई तो व्याकुल हो गयी। सुन्दरलाल भी बैचेन दिखे। अविनाश अब भी ज्योति के आसुं पोंछ रहा था। ससुराल पहूंचते ही ज्योति का वास्तविक संघर्ष अब शुरू हुआ था। सीजर डिलेवरी के बाद भी उसका खयाल रखने वाला वहां कोई नहीं था।