तिश्नगी

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तिश्नगी (कहानी) लेखक - अब्दुल ग़फ़्फ़ार __________________1980 के दशक में गौना के बाद मायके से जब दुल्हन की दूसरी बिदाई होती थी तो उसे हमारे यहां दोंगा बोला जाता था। तब सीधे शादी के बाद दुल्हन ससुराल में नही बसती थी। बियाह के बाद गौना और गौना के बाद दोंगा। मतलब धीरे-धीरे लड़कियां, बेटी से बहू के रूप में तब्दील होती थीं। दोंगा के बाद मैं पहली बार ससुराल गया था। आज ससुराल में मेरा तीसरा दिन था। मेरी बीवी निलोफ़र दिन भर अपने मायके वालों में मसरूफ़ रहती। शर्म व हया के चलते जानबूझकर वो मेरे पास आने से कतराती थी।कल शाम