स्पर्श रेखाएं झगड़े के बाद माँ अकसर इस मंदिर आया करतीं घंटे, दो घंटे में जब मेरा गुस्सा उतर कर चिन्ता का रूप धारण करने लगता तो उन्हें घर लिवाने मैं यहीं इसी मंदिर आती एक-एक कर मैं प्रत्येक रुकाव एवं ठहराव पर जाती प्रसाद की परची कटवा रहीं, प्रसाद का दोना सम्भाल रही, माथा टेक रही, चरणामृत ले रही, बंट रहे प्रसाद के लिए हाथ बढ़ा रही, सरोवर की मछलियों को प्रसाद खिला रही, स्नान-घर में स्नान कर रही सभी अधेड़ स्त्रियों को मैं ध्यान से देखती-जोहती और दो-अढ़ाई घंटों में माँ का पता लगाने में सफल हो ही