बत्तखें

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बत्तखें मेरी नजर में पहले वह खिड़की उतरी थी|  दो संलग्न आड़ी दीवारों के बीच एक बुर्ज की भांति खड़ी|  बाहर की ओर उछलती हुई|  आगे बढ़ी तो देखा बाबूजी उस खिड़की पर खड़े थे|  क्या वह नीचे कूदने वाले थे? क्या मैं उन्हें बचा सकूँगी? “बाबूजी,” मैं ने उन्हें वहीं नीचे से पुकारा| वह नीचे आ गए| हवा के रास्ते| “तुम भी हवा के सहारे कहीं भी आ जा सकती हो,” वह मुझ से बोले| “आप की तरह?” मैंने पूछा| “हाँ,” उन्होंने मेरा कंधा छुआ मानो वह किसी जादुई छड़ी से मुझे छू रहे थे| और उन के साथ