कहानी विभाजन -आर.एन.सुनगरया, ‘’दीनदयाल जी....!’’ ’’आओ...आओ रत्नेशजी...!’’ ’’किस सोच में....!’’ ’’कुछ नहीं...’’ दीनदयाल ने बताया, ‘’कुछ पुराने दृश्यों में खो गया था।‘’ ‘’कुछ खास!’’ ’’ऐसे वाकिये याद आकर सताते हैं।‘’ दीनदयाल