रत्नावली 13

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रत्नावली रामगोपाल भावुक तेरह आस्थाओं-अनास्थाओं में युगों-युगों से संघर्ष होता रहा है। विजयश्री कभी आस्थाओं को मिली है, कभी अनास्थाओं को। आस्थाहीन मानव को लोग भटका हुआ मानते हैं। वह जिस चिन्तन में अपने को आत्मसात् किये रहता है उसमें उसका आत्मविश्वास पर्वत की भॉँति अटल अविचल खड़ा होता है। आस्थाओं वाले धरातल के तथ्य को वह अपने तर्कों की अनुभूतियों से काट फेंकता है। इनमें उसका कोई न कोई दर्शन अवश्य होता है।... रामा भैया रात भर ऐसी ही बातें सोचते रहे। और रत्नावली रात भर सोचती रही - मैंने जाने