व्यंग्य डॉक्टर कवि की अनोठी शल्य क्रिया’ रामगोपाल भावुक अश्वनी मास की धूप, गाँव में सफाई की कमी, मच्छरों का प्रकोप से लोग बीमार पड़ने लगे। मुझे भी मलेरिया हो गया। पापा के साथ सरकारी अस्पताल के चार-छह चक्कर लगये, लेकिन डॉक्टर साहब नदारत। गाँव के नीम-हकीम डॉक्टर से सात दिन से दवायें ले रही हूँ, बीमारी घटने बजाय बढ़ रही हैं। मेरे स्वास्थ की बिगडती स्थिति देखकर मम्मी, पापा जी से बोलीं-‘‘इसे तो शहर के वयोवृद्ध चिकित्सक केतकर जी को दिखाकर लाओ।‘‘ पापा बोले ‘‘सुगन्धा, चल उठ, आज ही उन्हें दिखा लाता हूँ