कर्मण्येवाधिकारस्ते

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कर्मण्येवाधिकारस्ते   अन्नदा पाटनी       छिटक कर आती वातायन से किरणें   सूरज की,   कमरे की दीवार पर बनाती हुई एक आकृति अंगूठे की   जैसे चिढ़ा रही हो सिंगट्टा   “होगे तुम बड़ी साख वाले,   होगे तुम बहुत पैसेवाले,   बडे बड़े महलों में रहने वाले,   सोचते होगे तुम्हारे घर ही आयेंगे,   झोंपड़ी वालों को तरसाएंगे ।   मत पालो भ्रम बहुत ख़ास होने का,   मत करो अहंकार अमीर होने का,   महल तुम्हारा हो या ग़रीब की कुटिया,   हम किरणों ने, नहीं रखी सोच यह घटिया।       यह