मेरा मीठा-सा महापाप

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चलो सुनाऊँ तुम्हें कहानी, अपने छुटपन की;मैं और मेरे पेटूपन की...चटर-पटर खाते-खाते, बढ़ गई मेरी तोंद;पर मुझको हरदम भाती, लड्डू वाली गोंद...चाउमीन, बर्गर से हो गई गोल-मटोल;पर मुझको समझ ना आये किसी के बोल...सब्ज़ी में मुझको भाये केवल आलू;और कभी-कभी खाऊन, इमली वाले कचालू...सरपट मैं भागी जाऊँ, पास वाले नुक्कड़;सब को पता चल जाता, कितनी मैं भुक्कड़...सुबह-सुबह, गर्मागर्म मिल जाये आलू की कचौड़ी,और शाम को कुरकुरी प्याज की पकोड़ी...दोपहर को खाती हलवा और पूड़ी;माँ मुझको जल्दी दे दो, सहै ना जाये दूरी...कभी-कभी जो मिल जाये, पानी पताशा;झटपट मैं खाती जाऊं, घरवाले देखे तमाशा ...थोड़ी-खट्टी, थोड़ी-मीठी; बाज़ार में ढूँढूँ चटपटी चाट;पर