गुम हो चुकी लड़की...

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अमिता नीरव दिसंबर जा रहा था..... वो गुजरते साल का एक और छोटा-सा दिन था...... गुलमोहर के पेड़ के नीचे धूप और छाह से बुने कालीन पर वो मेरे सामने बैठी थी। उसके सिर और कंधों पर धूप के चकते उभर आए थे..... मोरपंखी कुर्ते पर हरा दुपट्टा पड़ा था......कालीन की बुनावट को मुग्ध होकर देखती उस लड़की ने एकाएक सिर उठाया और उल्लास से कहा- बसंत आने वाला है। केसरिया दिन और सतरंगी शामें.....नशीली-नशीली रातें, रून-झुन करती सुबह.... नाजुक फूल..... हरी-सुनहरी और लाल कोंपलें.....ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति हमें लोक-गीत सुना रही है।हल्की सी हवा से उड़कर गुलमोहर के