कहानीकामिनी निर्विकार भाव से बैठी शून्य में ताक रही थी। सामने रखी हुई चाय कब की ठंडी हो चुकी थी।कल तक जिस घर में हंसी-मजाक, ठहाकों की आवाजें गूंजती थी, रसोई खूशबू से तर रहती, कहीं बेटी की साङ़ियां बिखरी होती तो कहीं सलवार-कमीज़, कभी कौनसी फिल्म देखने जाना है इस पर भारी डिश्कशन होता तो कभी अगली छुट्टियों की प्लानिंग.....पर आज पूरे घर में गहरी चुप्पी थी। कामिनी के कानों में अचानक बेटी और नातिन की आवाज गूंजने लगती पर नजरें उठाकर देखती तो सांय-सांय करता उदास घर खाने को दौङ़ रहा था।गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था चारों ओर ठीक