पाथर घाटी का शोर: पत्थर खदान का दर्द

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समीक्षा- पाथर घाटी का शोर: पत्थर खदान का दर्द -राजनारायण बोहरे आलोचकों की नजर में हिंदी उपन्यास का वर्तमान समय बड़ा कठिन और चिंतनीय है। कम लेखक इन दिनों उपन्यास लिख रहे हैं और कुछ कथा आलोचक तो उपन्यास की मृत्यु जैसा जुमला उछालने को पुनः तत्पर दिखार्द दे रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों कुछ बहुत ही अच्छे उपन्यास पाठकों के सामने आए हैं जो लेखकों की सूक्ष्म और नवीन दृष्टि तथा अनुभव जन्य परिवेशगत भाषा और भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से लोगों तक पहुंचाने में समर्थ हुए है। ‘ पाथर घाटी का शोर ’ पिछले दिनों प्रकाशित