पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 21

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चैप्टर 21 महासागर में। अगले दिन तक हम अपनी सारी थकान भूल चुके थे। सबसे पहले तो मैं प्यासा नहीं महसूस कर रहा था और मेरे लिए ये ताज्जुब की बात थी। दरअसल पानी की जो पतली धारा बह रही थी वो मेरे पैरों को भिगो रही थी, इसलिए किसी शुष्कता का एहसास नहीं हुआ।पेट भर कर हमने अच्छे से नाश्ता किया और वो पानी पिया जो हमने भरा था। मैं अपने आप को एकदम नया महसूस कर रहा था जो मौसाजी के साथ कहीं भी चलने के लिए तैयार हो। मैं सोचने लगा। जब मौसाजी जैसा दृढ़प्रतिज्ञ, हैन्स जैसा