हमारी इलेक्ट्रानिक जीप रेगिस्तान के गर्म सीने में तेजी से दौड़ रही थी. आज चौथा दिन था और हम उत्तर पश्चिमी दिशा में घूम रहे थे. राडार का पर्दा कहीं प्राणी होने का कोई संकेत नहीं दे रहा था, जबकि चीफ को पूरा विश्वास था कि बाबू हरिहर यहीं कहीं छिपकर अपनी खोजों और प्रयोगों में व्यस्त है.बाबू हरिहर के बारे में जानने के लिए हमें आज से नौ वर्ष पीछे लौटना पड़ेगा. नौ वर्ष पहले 16 मार्च को अखबारों ने एक विचित्र समाचार प्रकाशित किया था. समाचार कुछ इस प्रकार था-राजधानी की प्रसिद्ध खिलौनों की दुकान ‘जॉय विद टॉय’