आमतौर पर किसी भी किताब को पढ़ने के बाद मेरी पहली कोशिश होती है कि उस पर एक आध दिन के भीतर ही मैं अपनी पाठकीय प्रतिक्रिया लिख लूँ। मगर इस बार संयोग कुछ ऐसा बना कि पहली बार किसी किताब को लगभग 4 महीने पहले पढ़ने के बावजूद भी उस पर बस इसलिए नहीं लिख पाया कि उसे मैंने हार्ड कॉपी के बजाय किंडल पर पढ़ा। मगर अपन तो ठहरे देसी टाइप के एकदम सीधे साधे जलेबी मार्का बंदे। जब तक ठोस किताब हाथ में ना आ जाए..पढ़ने का मज़ा बिल्कुल नहीं आता या कह लो कि सब कुछ