जिंदगी रुकती नहीं

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अप्रेल माह का तीसरा शनिवार था, गर्मी अपना प्रचण्ड रूप धारण किये हुए थी। बाहर सूरज आग उगल रहा था और घर में वे बेटे पर बरस रही थीं, "कान खोल कर सुन ले, उस बंगाली लड़की से तेरा विवाह नहीं हो सकता, ये माँस-मछली खाने वाले लोग हैं और हम ठहरे कट्टर शाकाहारी...." "बस इतनी सी बात?" बेटा रहस्यमय तरीके से मुस्कराया, "मुझे छ: साल हो गये मुम्बई में रहते हुए, अब मैं सब कुछ खाने लगा हूँ।" "सब-कुछ?" क्या मतलब है तेरा? "मतलब तुम खूब समझ रही हो माँ।" उन्हें गहरा धक्का लगा, "यह क्या कह रहा है