आजादी - 11

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सिपाही का झन्नाटेदार थप्पड़ विजय के लिए अप्रत्याशित ही था । उसकी आँखों के सामने तारे नाच उठे । एक हाथ से अपना गाल सहलाते हुए विजय ने सिपाही की तरफ रोष से देखते हुए उसके अगले सवाल का जवाब देने के लिए खुद को तैयार कर लिया । सिपाही ने उससे दूसरा सवाल पूछा जैसे कुछ हुआ ही न हो ” कहाँ रहता है ? ”विजय ने शांत स्वर में बताया ” बेघर हूँ साहब ! ये धरती मैया ही मेरा बिछौना और ये आसमान ही मेरा चद्दर है । ”” ठीक है । ठीक है । अब ज्यादा