सुलझे...अनसुलझे बाल दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न --------------------- मासूम मन उस कच्ची मिट्टी के शरीर में दबे बीज की तरह होता है| जिसके पास पनपने के लिए जोश व साहस अन्दर ही अन्दर पनप रहा होता है क्योंकि प्रकृति की हर शय जीवन्तता के साथ सृष्टि में प्रविष्ट होती है| पर जब कभी अचानक ही उश्रंगल मानसिक प्रवृत्तियां या कुंठित प्रवृतियां उस पर, निजी स्वार्थवश आक्रमण करती हैं तो वहीं जोशीला मन अवसाद से घिर कर डरा- डरा सहमा-सहमा शरीर के एक कोने में बैठ, अपने सिर को छुपाने की भरसक कोशिशें करता है| बहुधा मासूम को पता ही नहीं होता,