चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 15

  • 8.4k
  • 2.7k

चार्ली चैप्लिन मेरी आत्मकथा अनुवाद सूरज प्रकाश 15 हमें यात्रा करते हुए बारह दिन हो चुके थे, और हमारा अगला पड़ाव क्यूबेक था। बेहद खराब मौसम और चारों तरफ लहराता हुआ महासमुद। तीन दिन तक तो हम टूटी पतवार लेकर पड़े रहे, इसके बावज़ूद मैं तो एक दूसरी ही दुनिया में जाने के विचार से उल्लसित था और अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रहा था। मवेशियों वाली नाव पर हम कनाडा हो कर जा रहे थे। नाव पर गाय, बैल, भेड़, बकरी भले ही न हों, पर चूहे ढेर सारे थे और रह-रह कर वे बड़ी हेकड़ी से मेरी