एक दुनिया अजनबी - 17

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एक दुनिया अजनबी 17 - उस दिन प्रखर को अपने भीतर कुछ बदलाव सा महसूस हुआ | लगा शायद उसके मन के आँगन की बंद खिड़की की कोई झिर्री खुल गई है |कोई नरम हवा सी मन को छू सी गई, कोई बात करने वाला शायद मिले, शायद कोई उसकी बात समझने वाला मिले !आस का एक झरोखा सा मन में फड़फड़ाने लगा | उस दिन काम में भी कुछ मन लगने के आसार लगने लगे | अकेलेपन और एकांत में बहुत फ़र्क है | जहाँ एकांत स्वयं से वार्तालाप करने का अवसर देता है, वहीं अकेलापन मन को तोड़ डालता है| प्रखर को