जट्टा और चिरैय्या चिर्रय

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वह औचक ही सामने आ गया था. मुझपर नज़र पड़ते ही शर्मिंदगी से उसकी आँखें झुक गई थी. मानो उसका कृत्य क्षण भर पहले का हो. इतने वर्ष बीत गये, वक़्त नये नये पैहरन तैयार करता रहा और पुरानी उतरनें बनती रही. उन्ही उतरनों में से एक आज मेरे समक्ष ऐसे आ गया जैसे काले रंग का वह कुर्ता जिसे पहनने के बाद किसी अप्रिय घटना का घटित होना तय होता और वह दिन हमेशा ही गुरुवार होता. ताई जी कहती – गुरुवार को काला ना पहना कर और शनिवार को पीला, अपशगुन होता है. दुनिया के शुरू होने से