गायक झींगुर को लंबी बरसात ने दुखी कर डाला था. कई महीनों से लगातार गाई जा रही एक ही गाने की धुन-‘जम के बरसों बरखा रानी...’ अब भला किस को अच्छी लगती? बरसात से पहले जो पशुपक्षी इस गीत की फरमाइश ले कर आए थे, वे भी अब उसे चुप होने को कह रहे थे.सो झींगुर ने कहीं और जाने की ठान ली. सुस्त, सफेद घोंघे को जब यह बात पता चली तो उस ने भी साथ चलने की इच्छा प्रकट की. दरअसल पिछले तीन महीनों में चमेली के सभी पत्तों को चाट-चाट कर सफेद घोंघे ने उन्हें स्वादहीन बना डाला