जगत बा

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जगत बा [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] कुछ बरस पहले मैंने अपने सरकारी घर के पीछे के कम्पाउंड में खुलने वाला दरवाज़ा खोला था, देखा वे हैं -बा, दो कपडों के लम्बे थैलों में वे अपनी कपड़े ठूंसे खड़ी हैं। झुर्रियों भरा चेहरा, पतली दुबली, छोटे कद की देह, नीले पतले बॉर्डर वाली हलके रंग की साड़ी में अपने छोटे काले सफ़ेद बालों को पीछे जुड़े में बांधे हुए, एक आम गंवई गुजरातिन। "बा तारा बेन नथी, पानी जुईये [तारा बेन घर पर नहीं हैं, पानी चाहिए ]?" "पिड़वा दो [ पिला दो ]."कहते हुए वह हमारे घर के आऊट हाउस