आ अब लौट चलें

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आ अब लौट चलें। (कहानी)लेखक - अब्दुल ग़फ़्फ़ार उस समय मैं दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था जब धर्मा के मरने की ख़बर मिली। उसे गेहुअन सांप ने डंस लिया था। धर्मा कोई मेरा सगा संबंधी तो नही था लेकिन सगा से कम भी नहीं था। वो मेरे बाबू जी की खेतीबाड़ी देखता था। बाबू जी का चश्मा, बाबू जी का छाता, बाबू जी का टॉर्च और बाबू जी की घड़ी, सभी चीज़ों की रिपेयरिंग कराने की ज़िम्मेदारी उसी की थी।उसकी मेहनत, ईमानदारी और वफ़ादारी की लोग मिसालें दिया करते थे। गांव के कई लोगों ने अनेक प्रलोभन देकर उसे अपनाना चाहा