चिराग़-गुल

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चिराग़-गुल बहन की मृत्यु का समाचार मुझे टेलीफोन पर मिला. पत्नी और मैं उस समय एक विशेष पार्टी के लिए निकल रहे थे. पत्नी शीशे के सामने अपना अन्तिम निरीक्षण कर रही थी और मैं तैयार कबाबों से भरे दो हॉट-केस व बर्फ़ की तीन बाल्टियों को गाड़ी में टिका कर पत्नी को लिवाने कमरे में लौटा था. “टेलीफ़ोन सुनें या रहने दें?” टेलीफ़ोन की घंटी की ओर मेरा ध्यान पत्नी ने ही आकर्षित किया था. “तुम बताओ.” आधुनिक यन्त्रों में मैं सबसे अधिक टेलीफ़ोन से घबराता हूँ. “चलो, सुन लेते हैं,” पत्नी मुस्करायी, “रेणु का हुआ तो कह देना