पश्चाताप भाग -8

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पश्चाताप -8 अब हर रविवार शशिकान्त का सारा समय पूर्णिमा के पिता के पास ही बीतता | एक बात बीतों ही बातों मे वह पूर्णिमा के पिता से पूँछ बैठता है ,अंकल एक बात पूँछू ! | हाँ हाँ! दो पूँछो ! उत्हासपूर्वक | आपने पूर्णिमा के बारे मे आगे क्या सोचा है ! | आगे क्या सोचना बेटा ! भाग्य मे जो लिखा है वह तो भुगतना ही पड़ेगा ! | भाग्य! आपको पता है , भाग्य क्या होता है ? सामने एक स्लेट पड़ी थी, जिसपर अभी थोड़ी देर पहले ही पूर्णिमा अपनी बेटी को पढ़ा रही थी