कविता कोश 'मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है'मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है,फिर भी तुम्हें न जाने क्यूंअपनी मोहब्बत से इंकार है।न चाहते हुए भी स्वदेश से हुई दूर । जिंदगी दी थी जिन्होंने,उन्हें ही छोड़ने को हुई मजबूर।मुझे तुम्हारा हर प्रस्ताव स्वीकार है।जिस आत्मनिर्भरता को देख हुए थे अभिभूतनृत्य कला को छोड़ने को हो गई तैयार।दफ़न कर दिया अपनी आकांक्षाओं को,चल दी साथ तुम्हारे, अपने दिल को थाम।तुम्हारे स्वप्नों में भरने लगी रंग,खुद के परों को समेटे हुए, हुई तुम्हारे संग। अब बहुत निभा ली कसमें