हमें हैं चंगे...बुरा ना कोय- सुरेन्द्र मोहन पाठक

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टीवी...इंटरनेट और मल्टीप्लेक्स से पहले एक समय ऐसा भी था जब मनोरंजन और जानकारी के साधनों के नाम पर हमारे पास दूरदर्शन, रेडियो,अखबारें और बस किताबें होती थी। ऐसे में रेडियो और दूरदर्शन के जलवे से बच निकलने के बाद ज़्यादातर हर कोई कुछ ना कुछ पढ़ता नज़र आता था और पढ़ने की कोई ना कोई सामग्री हर किसी के हाथ में अवश्य नज़र आती थी। भले ही वो बच्चों के हाथों में कॉमिक्स के रूप में तो बड़ों के हाथों मे कोई ना कोई कहानी/कविता संकलन अथवा उपन्यास अपनी हाज़री बजा..उपस्थिति दर्ज कराता हुआ नज़र आता था। बस अड्डों