एक दुनिया अजनबी - 8

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एक दुनिया अजनबी 8- घुटन का मन में भरा होना आदमी को बड़ा भारी पड़ता है | वह चीख़-चिल्ला ले, एक बार सब-कुछ कहकर छुट्टी कर ले, सहज हो जाता है किन्तु भीतर भरे रहना यानि हर पल ख़ुद से ही जूझते हुए मरते रहना तिल-तिलकर ! अपनी त्रुटियों के लिए पछताने को अब कुछ रह नहीं गया था और जीवन था कि मुह फाड़े खड़ा था | एक बार तड़का हुआ सूरज और दूसरी बार घुप्प अँधेरा ! कोई बीच का मार्ग नहीं | माना, जीवन ऊँचे-नीचे रास्तों पर ही चलता है, कोई सपाट रास्ता नहीं उसके लिए लेकिन सच तो ये है कि आदमी चाहे