उजाले की ओर - 11

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उजाले की ओर--11 --------------------------- स्नेही मित्रो आप सबको नमन जीवन की आपाधापी कभी कभी हमें इतना निराश कर देती है कि हम उसमें उलझकर रह जाते हैं हम ईश्वर के द्वारा प्रदत्त सुंदर शुभाशीषों को भी अनुभव नहीं कर पाते त्रुटियाँ मनुष्य से होना स्वाभाविक है जिनके लिए ईश्वर हमें अवसर भी प्रदान करता है कि हम उनमें सुधार कर सकें किन्तु हम उन्हें सुधारने की अपेक्षा उन्हें और भी अधिक जटिल बना देते हैं एवं अनेकों उतार-चढावों में भटकते रह जाते हैं जीवन के ये उतार-चढ़ाव हमें किसी न किसी पर दोष