एक दुनिया अजनबी - 7

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एक दुनिया अजनबी 7- उसकी बुद्धि उसे कुछ सोचने का अवसर ही न देती | ब्लैंक हो गया था वह ! गलतियाँ करके बार-बार माफ़ी माँगने पर भी जब उसे मन की अँधेरी गलियों में सीलन की जगह एक भी किरण न मिली तब उसने संदीप की बात मान लेना ही उचित समझा | वही तो लाया था उसे यहाँ | कैसी मदहोशी चढ़ती है न आदमी को ! न जाने किस नशे में वह अपना आपा खो बैठता है | यह सच है हर बात के पीछे कुछ कारण होते हैं पर भुगतना भी तो उसीको ही पड़ता है जो कर्म करता है, जीवन