सिधपुर की भगतणें - लक्ष्मी शर्मा

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किसी भी क्षेत्र के समाज..वहाँ की संस्कृति...वहाँ की भाषा और रीति रिवाजों को जानने..समझने का सबसे बढ़िया तरीका है कि वहाँ के ग्रामीण अंचल की तसल्लीबख्श ढंग से खोज खबर लेते हुए..सुद्ध ली जाए मगर संयोग हमेशा कुछ कुछ ऐसा बना कि मैं शहरी क्षेत्र से ही हर बार वापिस निकल आया मानों शहर के एन बीचों बीच किस्मत ने कस के खूँटा गाड़ दिया हो कि..."ले!...इसके आले द्वाले जितना मर्ज़ी घूम ले मगर भीतर बड़ने का नाम भी मति ले लेइयो।"अब सिर्फ शहर भर में ही घूमने से तो बस वही चटपटा शहरी स्वाद..वही ट्रैफिक की रेलमपेल, वहीं कन्धे