ख़ामोशी बोलती है

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'रमेश..आगे एक मोड़ आएगा वहाँ एक चाय की गुमटी होगी, थोड़ी देर के लिए कार रोक लेना'. 'मैडम..आप की चाय की थर्मस ले कर आया हूं' रमेश थोड़ा चौंकते हुए बोला.इस का चौंकना सही है मुझे कभी यूँ सड़क किनारे चाय या कुछ खाते पीते कभी देखा नही है..'उसे रखें रहो, बाद में पी लूंगी..आज बाहर की चाय पी लेती हूं' मैं ईशा राय आज लगभग 8 सालों के बाद अपनी जन्मस्थली जा रही हूं, दूरी बहुत है..रास्ता लंबा पर दिल पुरसुकून है, सोई हुई ख्वाहिशों की चादर हटा कर आसमान में अनगिनत तारे देखने की इच्छा जाग्रत हुई तो फिर चल