बर्फ के अंगारे

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बर्फ के अंगारे खून को जला देने वाली जून की तपती दुपहरी। लोगों के शरीर से पसीना चूह रहा था। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बैठी लाजो अपने गांव जाने वाली गाड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी। उसके मुर्झाए हुए चेहरे को देखकर कोई भी कह सकता था कि वह बहुत परेशान है। वह किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी। तभी उसके कानों से किसी की थकी हुई आवाज टकराई। ‘‘भई, अपने बीबी-बच्चों के लिए पसीना नहीं बहाएंगे, तो किसके लिए बहाएंगे ?’’ सोच की गहरी खाई से निकलकर लाजो ने आवाज की तरफ देखा। दो पतले-दुबले अधेड़ आदमी लकड़ी