मुख़बिर - मुहिम

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मुहिम सिर पर टीकाटीक दोपहरी, लेकिन पुलिस वालों की तरफ से ऐसे कोई संकेत नहीं, कि भोजन-पानी की कोई व्यवस्था जल्दी ही करने वाले हों। भूख के मारे दोनों का बुरा हाल, घर होते तो अब तक दो बार खा चुके होते, लेकिन यहां तो भिनसारे से कलेऊ तक नहीं मिला । ‘‘यार लल्ला, जे लोग तो सांचउ बड़े जालिम दीस रहे हैं, दौ बजि गये, दिन लौटि परौ , औरिन्ने अब तक रोटी-पानी कीऊ नईं पूछी । बेहड़ा में घिसट-घिसट के पांव में छाले अलग परि गये ।‘‘ गिरराज ने फुसफुसाते हुए लल्ला से