पुस्तक समीक्षा समाज का सच व्यंग्य गणिका पुस्तक : व्यंग्य गणिका काव्य-संकलन लेखक : रामगोपाल भावुक पृष्ठ : 104 मूल्य :125 /- प्रकाशक : रजनी प्रकाशन Delhi 110051 पुस्तक समीक्षा : डॉ0 अवधेश चंसौलिया हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की स्थापना करने वाले श्री हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य को विधा न मानते हुए, आत्मा माना है। क्योंकि यह साहित्य की सभी विधाओं में विद्यमान रहता है। वे कहते हैं कि जरूरी नहीं कि व्यंग्य में हंसी आये। यदि वह चेतना को झकझोर दे, विद्रूप को सामने खड़ा कर दे, आत्मसाक्षात्कार करा दे, परिवर्तन के लिये प्रेरित करे तो वह