मंगत पहलवान ‘कुत्ता बँधा है क्या?’ एक अजनबी ने बंद फाटक की सलाखों के आर-पार पूछा| फाटक के बाहर एक बोर्ड टंगा रहा- कुत्ते से सावधान! ड्योढ़ी के चक्कर लगा रही मेरी बाइक रुक ली| बाइक मुझे उसी सुबह मिली थी| इस शर्त के साथ कि अकेले उस पर सवार होकर मैं घर का फाटक पार नहीं करूँगा| हालाँकि उस दिन मैंने आठ साल पूरे किए थे| ‘उसे पीछे आँगन में नहलाया जा रहा है|’ मैंने कहा| इतवार के इतवार माँ और बाबा एक दूसरे की मदद लेकर उसे ज़रूर नहलाया करते| उसे साबुन लगाने का जिम्मा बाबा का रहता