मंथन 2

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मंथन 2 दो जब रवि कान्ती बाबू के यहाँ से लौटा, आठ बज चुके थे। आज रवि ने अस्पताल नहीं खोला था, इसलिए वह सीधे ही घर चला आया। घर में जैसे ही प्रवेश किया, बशीर साहब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। रवि ने मुस्करा कर उनका अभिवादन किया। बशीर साहब अभिवादन स्वीकार करते हुए बोले, ‘डॉक्टर, मैंने सोचा मैं बरात में तो जा नहीं पाया। चलकर शादी की मुबारकवाद ही दे आऊं !‘ ‘आप बरात में क्यों नहीं चल पाये, इसकी सजा तो आपको भुगतना ही पड़ेगी !‘ ‘भई सजा भुगतने को तो तैयार हूँ,